Wednesday, November 29, 2006

गज़ल 4

धीरे से खुलती है परत खू-ए-यार की
अगाज़-ए-उल्फ़त मे रुसवाई नही होती

आईना निभाता है बेबाक देहारी अपनी
अक्स से कभी हम-नवा-ई नही होती

जोश कायदा है जिंदगी का
बहते पानी मे कभी काई नही होती

आदमी का बस यही ग़म-ए-दौरान है
इश्क से कभी रिहाई नही होती

Tuesday, November 14, 2006

तसव्वुर

पल भर की खुशी और फिर ग़म का साया
ख्वाब में उनका आना और लौट जाना

दीद की खुशी और मलाल हिज़ाब का
यूं उनका नज़र उठाना और झुका जाना

वस्ल का अहसास और दर्द हिज़्र का
उनका हाथ मिलाना और चला जाना

Tuesday, October 31, 2006

शुभ दिपावली

दीप हो खुशी के
भरपूर हंसी के
दीप हो जीत के
साथ मे मीत के
दीप हो संस्कार के
ना कि दुराचार के
दीप हो प्यार के
संग अपने यार के
दीप हो मिलन के
बिना किसी जलन के
दीप हो देश के
हर रुप भेष के
दीप हो संवाद के
ना हो आंतकवाद के
दीप हो भान्ति के
मगर हो शांती के
लौं सी रोशन हो खुशहाली आपकी
हर दीप से सजी हो दिवाली आपकी

Tuesday, October 10, 2006

गज़ल 3

जिंदगी जीने के काबिल नहीं
पर मौत से कुछ हासिल नहीं

चारागर से क्या उम्मीद रखें
जब चराह से हम ही कायल नहीं

फ़िरुंगा बे-फ़िक्र अर्सा-ए-आलम
अब कोई मेरा हामिल नहीं.

रोटी के चार हर्फ़,कुछ पन्ने किताबों के,
जिंदगी से कुछ और हासिल नहीं.

Friday, September 29, 2006

जीवन के सत्य

लक्ष्मी और सरस्वती सौतेली बहनें हैं.
कद और उंचाई एक दूसरे क पर्याय नही होते.
जीवन का मौत से कोई सबंध नही होता.
कुत्ता इंसान से भी वफ़ादारी करता है.
यथार्थ और भ्रम समज का फेर है.
कोइ भी सम्बन्ध स्थायी नही रहता.
सच आवश्यक्ता अनुसार बदलता है.
पर झूठ स्थायी होता है.

Sunday, September 24, 2006

विस्तार

काम की राह पर,कब तक चलोगे,
रती के मोह मे ,कब तक बहोगे.

स्पर्श से बढ़ी भी अनुभूति है,
एक ही अहसास पर कब तक जियोगे.

वक्ष और योनि से हटकर देखो
स्त्री मे अंग से परे भी कुछ है,

विस्त्रत करो सीमायें आंखो की,
दिशा बोध से कब तक वन्चित रहोगे.

तन से शुरु और तन पे समाप्त,
हर विचार कि इतनी हि परिधि है,

फ़ैलाओ हदें मस्तिष्क की,
ज्ञान को कब तक संकुचित रखोगे.

Thursday, September 21, 2006

मैं

There are two मैं in this verse the first one is me and the one in quotes is my ego.

मैं जब 'मैं' था,तो सब मैं था,
ईश मैं, न्रप मैं, जग मैं जगदीश मैं,
सब मैं था.
मैं जब 'मैं' था,तो सब मैं था,

When I was egoistic,every thing in the world was me.

मैं जब 'मैं' था,तो बस मैं था,
था भीड़ मैं मगर तन्हा मैं था
मैं जब 'मैं' था,तो बस मैं था,

But I was alone.The word सब changes to बस

मैने जब 'मैं' को तोडा,
ईर्श्या के पाश को छोडा,
सब हो गये मेरे अपने,
मैने सब को खुद से जोडा.
मैने जब 'मैं' को तोडा,

When I broke my ego,my jealousy. I found that everyone accepted me

स्व्च्छंद विचार,असीम आनंद,
सभी सुखों से रम हूं
मैं आज हम हूं.
मैं आज हम हूं.

Wednesday, September 06, 2006

Some Triplets

कयीं बार इस राह से गुजरा हूँ ,
कयीं बार मुढ़ के देखा है,
वो अह्सास तुम्हारा,सिर्फ़ एक दोख़ा है.

न जाने क्यों राहें बिछ्ड्ती हैं,
न जाने क्यों दोराहे आते हैं ,
ता-उम्र के वादे पल मे टूट जाते हैं.

क्या कहूं अब भी अह्सास मिट्ता नहीं,
क्या कहूं अब भी शोले दहकतें हैं,
मिलने के सबब की तलाश मैं.

Friday, July 28, 2006

Sach

Sanskrit ke adhyapak Raam ki do betiyan hai :Imaandari aur sanskriti.
Jitna vetan milta hai usme Raam ka gujara bhi nahi chalta.
Jo baap ka haal wohi betiyon ka.Na tan pe pure kapde aur na pet pura bhara.
Jaise taise gujaara chalta hai.
Imaandari Hindi me MA hai aur sanskriti grahshastra me BA.
Dono ki roji roti ka bhi koi thikana nahi.MNC ke jamaane me bhala Hindi aur grahshastra ko kaun poochta hai.
Raam ko keval ye hi chinta hai ki jawaan betiyon ka vivaah kaise hoga.Wo sheher ke sabhi jawaan ladko ka rishta dekh chuka hai.
Per gareeb brahman ki kya pooch.
Le dekar Dharm aur rajniti ke beton: Brachtachar aur Aatank ka hi rishta bachta hai.
Use yahi chinta sataati hai, ke yeh bemail rishta kya safal hoga.
Use pata hai ke Brachtachar aur Aatank se vivaah kar Imaandari aur sanskriti ka astitva hi khatam ho jayega.Per wo kare to kya kare.....

Use aaj bhi yahi lagta hai ki Kunwarepan se wajood jyada mehtavapoorna hai.
Shayad isliye wo ek gareeb bhasha ka gareeb master hai.Aur uski betiyan abhi tak kunwaari.

Monday, July 24, 2006

गज़ल 2

रुख़ नहीं किया मयखाने की तरफ़ ,
कयीं दिनो से शराफ़त हो गयी है.

तेरे नाम के रखता हूं मे रोज़े,
अब खुदा से खिलाफ़त हो गयी है.

तुझको ज़हन मे रख़ के पडता हूं कलमा,
कुछ ऐसी मेरी इबादत हो गयी है.

तेरे अहद पे भरोसा कब तक करूं,
अब तो आजा कि कयामत हो गयी है.

सब रगं तेरे अहद के, मोहब्बत के धुल गये,
मुश्किलों कि जो एक बरसात हो गयी है.

ऎ खुदा तुझ पे भरोसा कैसे करूं,
तेरी भी इन्सानों सी जात हो गयी है.

तमाम शहर भटका फिर भी न कह सका,
एक इन्सान से मुलाकात हो गयी है.

Monday, July 17, 2006

गज़ल 1

दिल मे कब्रिस्तान बना के दफ़्न कर दिया,
इज़हार को ला-इलाज़ मर्ज़ था.

उसकी खुशी की खातिर उसीकी मोहब्बत ठुकरादी,
मैं भी कितना खुदगर्ज़ था.

वो अश्कों को हौसले से दबाकर खडी रही,
दूध से बडा देश का कर्ज़ था.

पूछ्ते हैं वो फ़नाह होकर क्या हुआ हासिल,
बस उनका नाम शहीदों में दर्ज़ था.

Friday, July 14, 2006

Kahin use pata to nahi chala?

Wo bhi kya din the
college ka mast mahol,Har taraf rangeeniyan hi rangeeniyan,
Love affair to jaise aam baat ho,
usi beech kaheen main tha.....
chahta to use bahut tha ,per kehne ka dam nahi...
Ummed to yahi thi ki wo na nahi kahegi.Per............
isi per ne mujhe rok ke rakha........
doston ko sab khabhar thi, aakhir dil ki baat unse hi to share karta..
per unhe kuch na kehne ki kasam....
meri poori koshish rehti ki us tak mera ahsas na pahunche.
per main sochta yehi rehta tha ki use khabhar ho jaye...
dost jab uske saamne majak udate ya uska naam mere naam se jodte,to main ghabra jata
us waqt uske chehre ke bhaav se aisa lagta jaise wo sab jaanti ho.
Per main yahi sochta ki Kahin use pata to nahi chala?
ajeeb widambana thi....

Aaj main usse bahut door hoon .pyar to door dosti bhi nahi.
Per main aaj bhi yahi sochta hoon ki
Kahin use pata to nahi chala?

Sunday, July 09, 2006

चन्द अशार

मन से भी होता है मिलन,
तन का मिलना ही सब कुछ नही होता,
बन्द आखों मे भी गिरते हैं आंसू,
खुली आंख का रोना ही रोना नही होता.

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मुझसे मेरा ग़म छीनने का तुम्हे हक नही,
जो तुम्हरा था,वो तुम कब का ले चुके.

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जो नहीं नसीब मैं तेरा प्यार,
क्या मय से मयस्सर हो जायेगा,
फिर भी पीता हूं जाम,
के जख्म बे-असर हो जायेगा.

Thursday, July 06, 2006

उसकी मज़ार

मैं खडा था उसकी मज़ार पर,
तन्हा ,निराश ,हताश एकदम अकेला....
मुहँ मे शब्द नहीं थे
आंसू रुकते नहीं थे.
तन शान्त था मगर
मन मे विचारों का युद्ध.
हर दिशा से एक विचार आता और
दूसरी दिशा के विचार से टकरा जाता
इतनी दिशायें होती हैं मुझे मालूम ही नही था.
हर विचार मुझे माझी कि याद दिलाता
हर विचार मुझे और पीछे ले जाता.
हर विचार तेरे और करीब ले जाता......
तुम ही कहो
क्यों रोक लगाता मैं अपने विचार पर.
मैं खडा था उसकी मज़ार पर,

Wednesday, July 05, 2006

तलाश

दूर कहीं से एक अवाज़ आयी कुछ पहचानी कुछ अनजानी,एक धुंधली सी आक्रति नज़र आयी..कुछ देखी कुछ अनदेखी...कौतुहलता के चलते मैं कुछ आगे बडा....आक्रति थोडी और साफ़ नज़र आयी..पर अभी भी मैं उसे अपने दिमाग मे बसे किसी भी चेहरे से मिला नही पा रहा था...मैं कुछ और आगे बडा. अचानक बिजली ने अन्धेरे को चीरा और मुझे कुछ पलों के लिये वो आक्रति दिखायी दी.....मुझे ऐसा लगा की बिजली जैसे मुझे चीर गयी हो......मेरे आश्चर्य की सभी सीमायें पार हो चुकी थी.क्या जीवन मैं ऐसा भी होता है?...क्या दो चेहरे एक जैसे हो सकते है? मेरे पास जो देखा उसका कोइ उत्तर नही था.
पर उसके चेहरे पे कोइ आश्चर्य नही था..पूछ्ने पर उसने बताया की वो मैं हि हूं.
ये कह कर वो गायब हो गया.मैं फिर अचम्बित था..क्या मैं अपने शरीर से ,अपने व्यक्तित्व से बाहर जी सकता हूं. क्या ऐसा मैं एक ही है जो मेरे देह के बाहर है ,य ऐसे कयीं और मैं है.
मैं आज भी इसका जवाब धूंढ रहा हूं................