कयीं बार इस राह से गुजरा हूँ ,
कयीं बार मुढ़ के देखा है,
वो अह्सास तुम्हारा,सिर्फ़ एक दोख़ा है.
न जाने क्यों राहें बिछ्ड्ती हैं,
न जाने क्यों दोराहे आते हैं ,
ता-उम्र के वादे पल मे टूट जाते हैं.
क्या कहूं अब भी अह्सास मिट्ता नहीं,
क्या कहूं अब भी शोले दहकतें हैं,
मिलने के सबब की तलाश मैं.
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