Sunday, July 09, 2006

चन्द अशार

मन से भी होता है मिलन,
तन का मिलना ही सब कुछ नही होता,
बन्द आखों मे भी गिरते हैं आंसू,
खुली आंख का रोना ही रोना नही होता.

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मुझसे मेरा ग़म छीनने का तुम्हे हक नही,
जो तुम्हरा था,वो तुम कब का ले चुके.

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जो नहीं नसीब मैं तेरा प्यार,
क्या मय से मयस्सर हो जायेगा,
फिर भी पीता हूं जाम,
के जख्म बे-असर हो जायेगा.

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