Friday, January 26, 2018

Ghazal

तुम मेरे नहीं हो यह है अहसास मुझे
तुम्हारा साथ फिर भी है ख़ास मुझे !!

नियति का खेल है , हम पहले नहीं मिले
अब दायरे नहीं कर सकते पामास मुझे !!

तोड़ कर जंजीरें समाज की चली आउंगी
हो जाये गर तेरी हाँ का, आभास मुझे !!

कुछ पल ही सही तुम मुझसे तो मिलोगे
नहीं चाहिए फिर कोई और पास मुझे !!

बस आखरी साँस तेरे आग़ोश में आये 
क़यामत भी आ जाएगी रास मुझे !!














Ghazal

सबसे ज्यादा तू चाहे मुझे , यह इबादत है मेरी
सिर्फ मोहब्बत ही नहीं तुझसे , तू आदत है मेरी !!

आखरी दिन जहाँ का तेरी गोद में गुजरे
तू ही संसार मेरा तू क़यामत है मेरी !!

तेरे प्यार की खुशबू से बदन महके मेरा
तू ही बाना मेरा तू ही सजावट मेरी !! 
Ghazal

बे - मौसम वो बारिश का सबब बनाते हैं l
हिज़ाब में चाँद छुपाके धूप में निकल जाते है ||

तबस्सुम होठों को छूके निकल जाती है |
वो बेवजह खुद को साजिंदा दिखाते है ||

तल्खियां -इ- इश्क की अब परवाह नहीं |
हवाओं के झोकें भी नश्तर चुभाते है ||

उन्हें आदत नहीं प्यार जताने की |
हम तग़ाफ़ुल के डर से छुपाते है ||

जो प्यार की चाह में दर दर चकते रहे  |
वो आज हमें नमक का स्वाद बताते है ||

मोहब्बत का असर उनके चेहरे पे दिखता है |
वो आईने के सामने खुद से छुपाते है ||

Friday, October 16, 2015

Ek ghazal

वापस अपने भेजे  गए पयाम मांगता है
वो मुझसे मोहब्बत का हिसाब मांगता है

हाथ छोड़कर पहले वो गया मगर
मुझसे जुदाई का असबाब  मांगता है

 यह हिज़्र भी उसीकी शह से है
जाने क्यों वो मुझसे जवाब मांगता है 

Monday, September 02, 2013

Ghazal

विरानों की आदत सी हो गयी है
मैं अब आवाजों से डरता हूँ ॥

कट गया अपनी जड़ो से कब से
मैं अब रिवाजों से डरता हूँ ॥

हर दस्तक पर सोचता हूँ रकीब न हो
मैं अब दरवाजों से डरता हूँ ॥


Wednesday, August 14, 2013

Ghazal

कईं दिनों तक उनका दीदार नही होता
यूं ही आशिक बीमार नही होता ॥

नहीं ईल्म उन्हें ग़म-ए -गर्दिश -ए -अय्याम का
सियासत में कोई ना दार नही होता ॥

एक मौके की तलाश में ता-उम्र भटकते रहे
वर्ना हमसे बेहतर कोई अदाकार नहीं होता ॥

वो हमसे पूछ्ते हैं क्या रफ्त है दोनों में
गर चाय नहीं होती तो अखबार नही होता ॥

Wednesday, June 05, 2013

Veer Ras

फिरंगियों को जो सुनाई आज वोही कथा दोहरानी है
नेताओ से इस देश को अब स्वतंत्रता दिलवानी है ॥

हिम से जमे रक्त में क्रांति की आग लगानी है
जिस देशभक्त का खून ना खोले खून नहीं वो पानी है ॥

सहनशीलता का लाभ उठाकर खूब हुई मनमानी है
अब बदलेंगे देश व्यवस्था हमने यही ठानी है ॥

बुंदेलो हरबोलों से जो हमने सुनी कहानी है
शस्त्र उठाकर हाथों में आज वही दोहरानी है ॥

भेंट चढ़ा दें देश को कसम यही खानी है
आधीनता में रहकर देह प्राण बेमानी है ॥















Ghazal

आरज़ू का बजा अंजाम नही होता
जैसा चाहा वैसा आम नही होता ॥

वो कहते है इश्क मुश्किल है
कौन समझाये,आसान कोई काम नही होता ॥

सुना हैं वो शाह का मुत्तसिल है,वरना
कोई ऐसा बे-लगाम नही होता ॥

शायर और उस पर बादाख्वार,
जहान में कोई इतना बदनाम नही होता ॥

(आरज़ू = Wish) (बजा = Desired) (मुत्तसिल = Near) (बादाख्वार = Drunkard)

Monday, June 03, 2013

Ghazal


कौन जाने कहाँ यह रात ले जाये
कहाँ मेरी उनसे यह मुलाकात ले जाये ॥

अब तक जो अहसास दफ्न थे दिल में
जाने कहाँ उसे मेरे जज़्बात ले जाये ॥

तूफ़ान तो दिल में वहाँ भी होगा, डर है
कहीं और, ना हमारे अघलात ले जाये ॥

(अघलात = Mistakes)



Wednesday, May 29, 2013

उठो भारत के पूत उठो

बहुत हुआ विशलेषण,बहुत हुई तैयारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

मौत दो उसे भयानक जो भ्रष्टाचारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

मधुर स्वप्न से बाहर निकलो, छोड़ो जो लाचारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाना अब यही देहारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

हर पुत्र बने भगत सिंह यही आस हमारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

स्वयं को करें देश अर्पण धन स्वप्न बिमारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥