Monday, July 17, 2006

गज़ल 1

दिल मे कब्रिस्तान बना के दफ़्न कर दिया,
इज़हार को ला-इलाज़ मर्ज़ था.

उसकी खुशी की खातिर उसीकी मोहब्बत ठुकरादी,
मैं भी कितना खुदगर्ज़ था.

वो अश्कों को हौसले से दबाकर खडी रही,
दूध से बडा देश का कर्ज़ था.

पूछ्ते हैं वो फ़नाह होकर क्या हुआ हासिल,
बस उनका नाम शहीदों में दर्ज़ था.

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