Wednesday, July 05, 2006

तलाश

दूर कहीं से एक अवाज़ आयी कुछ पहचानी कुछ अनजानी,एक धुंधली सी आक्रति नज़र आयी..कुछ देखी कुछ अनदेखी...कौतुहलता के चलते मैं कुछ आगे बडा....आक्रति थोडी और साफ़ नज़र आयी..पर अभी भी मैं उसे अपने दिमाग मे बसे किसी भी चेहरे से मिला नही पा रहा था...मैं कुछ और आगे बडा. अचानक बिजली ने अन्धेरे को चीरा और मुझे कुछ पलों के लिये वो आक्रति दिखायी दी.....मुझे ऐसा लगा की बिजली जैसे मुझे चीर गयी हो......मेरे आश्चर्य की सभी सीमायें पार हो चुकी थी.क्या जीवन मैं ऐसा भी होता है?...क्या दो चेहरे एक जैसे हो सकते है? मेरे पास जो देखा उसका कोइ उत्तर नही था.
पर उसके चेहरे पे कोइ आश्चर्य नही था..पूछ्ने पर उसने बताया की वो मैं हि हूं.
ये कह कर वो गायब हो गया.मैं फिर अचम्बित था..क्या मैं अपने शरीर से ,अपने व्यक्तित्व से बाहर जी सकता हूं. क्या ऐसा मैं एक ही है जो मेरे देह के बाहर है ,य ऐसे कयीं और मैं है.
मैं आज भी इसका जवाब धूंढ रहा हूं................

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