Inspired by the ghazal "Dil-e-naadan tujhe hua kya hai ,
Aakhir is dard ki dawa kya hai"
फ़िरता है अकेला वो दर बदर
जानता नही की काफ़िला क्या है
लगता नही दिल किसी भी ज़ियाफ़त मे
इश्क किया तो इसमें खता क्या है
खोजता हूँ तुझे हर इंसान मे
तू ही बता दे कि तेरा पता क्या है
हर नेकी का अंजाम ग़म होता है
या इलाही ये तेरी अता क्या है
Tuesday, June 22, 2010
Friday, June 18, 2010
विनाश काले विपरीत बुद्धी
हमारी द्रष्टी सीमित है
लघु हमारे इरादे
बिल विद्युत खर्च का
कोरे कोरे वादे
Biscuit कम दाम के
Toilet paper सस्ते
हर किसी मांग पर
कोरा नमस्ते
कक्ष मे बैठकर
वो बनायें कैसी नीति
१०% मुद्रा स्फ़ीति
५% वेतन व्रद्धि
कर्मचारी से बढी
हो गयी है पैसे की माया
१ निपुण के बदले २ नवीन
खूभ उपाय अपनाया
एकाएक उपलब्धियों के पैमाने
बदल रहे है
हम उतक्रष्टता से अधिकता की
और बढ रहे है
प्रतिबद्धता माने शोषन सहन करो
मुल्य मतलब प्रश्न दहन करो
फ़िर भी अगर तुम्हे कौतुहलता सताये
तर्क परेशान करें,
भूल से भी व्यवस्था या नीतियों पे
कुछ बोल पढो,
तो यह तुमहारी विक्रत प्रवर्ति और प्रतिकारी
स्वरुप का सूचक होगा
योग्यता निर्धारन के समय साल भर किये
अच्छे काम से ज्यादा इसका भार होगा
यह कौन समझे की अगर
यही हाल रहा तो कैसे होगी व्रद्धी
ठीक कहा है किसी ने
"विनाश काले विपरीत बुद्धी"
"विनाश काले विपरीत बुद्धी"
लघु हमारे इरादे
बिल विद्युत खर्च का
कोरे कोरे वादे
Biscuit कम दाम के
Toilet paper सस्ते
हर किसी मांग पर
कोरा नमस्ते
कक्ष मे बैठकर
वो बनायें कैसी नीति
१०% मुद्रा स्फ़ीति
५% वेतन व्रद्धि
कर्मचारी से बढी
हो गयी है पैसे की माया
१ निपुण के बदले २ नवीन
खूभ उपाय अपनाया
एकाएक उपलब्धियों के पैमाने
बदल रहे है
हम उतक्रष्टता से अधिकता की
और बढ रहे है
प्रतिबद्धता माने शोषन सहन करो
मुल्य मतलब प्रश्न दहन करो
फ़िर भी अगर तुम्हे कौतुहलता सताये
तर्क परेशान करें,
भूल से भी व्यवस्था या नीतियों पे
कुछ बोल पढो,
तो यह तुमहारी विक्रत प्रवर्ति और प्रतिकारी
स्वरुप का सूचक होगा
योग्यता निर्धारन के समय साल भर किये
अच्छे काम से ज्यादा इसका भार होगा
यह कौन समझे की अगर
यही हाल रहा तो कैसे होगी व्रद्धी
ठीक कहा है किसी ने
"विनाश काले विपरीत बुद्धी"
"विनाश काले विपरीत बुद्धी"
Monday, June 14, 2010
A tribute to Ghalib
Inspired by "Yeh na thi hamaari kismat ki visaale yaar hotaa"
होता हासिल हमें अंदाज़-ए-ग़ालिब अगर
जो भी निकलता मुंह से, वो लफ़्ज़ अशार होता
ग़म-ए-फ़ुऱकत से निज़ात मिलती
अगर मैं बादा-ख्वार होता
वो पुर्सिश-ए-हाल को आते
ऐ खुदा काश मैं बिमार होता
होता हासिल हमें अंदाज़-ए-ग़ालिब अगर
जो भी निकलता मुंह से, वो लफ़्ज़ अशार होता
ग़म-ए-फ़ुऱकत से निज़ात मिलती
अगर मैं बादा-ख्वार होता
वो पुर्सिश-ए-हाल को आते
ऐ खुदा काश मैं बिमार होता
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