पैसा लील गया खेल को
पीछे रह गये खिलाडी
बिना दौडे ही जीत गये
स्वर्न पदक कलमाडी
घोटलों का घोटाला है
राष्ट्र मंडल खेल
मुनाफ़े मे नेता गण
घाटे में भारतीय रेल
सबने खाया अपना हिस्सा
खुले आम थी लूट
वो कहतीं है मैं सच्ची हूँ
सब जाने है झूठ
शर्मसार देश हुआ
उनका झोला भारी
एक दूजे पे ढोलते रहे
वो अपनी जिम्मेवारी
लालच ने इंसान की
ऐसी मती मारी
गढ़े धन की खोज में
खुद गयी दिल्ली सारी
जिनको कुछ नही मिला
वो कर रहे हैं शोर
अपने हिस्से की चाह में
लगा रहें हैं जोर
जलती आग में विपक्ष
सेंक रहा है रोटी
अपने शासन में नही हुआ
ये कैसी किसमत फ़ूटी
जनता निपुंसक है वो
क्या कर लेगी
खबर पढेगी चाय के साथ
और काम पे चल देगी
एक और घोटाला होगा
लोग पुराना भूल जायेंगे
नेता खाते थे, खाते हैं
और खाते जायेंगे