Wednesday, June 05, 2013

Veer Ras

फिरंगियों को जो सुनाई आज वोही कथा दोहरानी है
नेताओ से इस देश को अब स्वतंत्रता दिलवानी है ॥

हिम से जमे रक्त में क्रांति की आग लगानी है
जिस देशभक्त का खून ना खोले खून नहीं वो पानी है ॥

सहनशीलता का लाभ उठाकर खूब हुई मनमानी है
अब बदलेंगे देश व्यवस्था हमने यही ठानी है ॥

बुंदेलो हरबोलों से जो हमने सुनी कहानी है
शस्त्र उठाकर हाथों में आज वही दोहरानी है ॥

भेंट चढ़ा दें देश को कसम यही खानी है
आधीनता में रहकर देह प्राण बेमानी है ॥















Ghazal

आरज़ू का बजा अंजाम नही होता
जैसा चाहा वैसा आम नही होता ॥

वो कहते है इश्क मुश्किल है
कौन समझाये,आसान कोई काम नही होता ॥

सुना हैं वो शाह का मुत्तसिल है,वरना
कोई ऐसा बे-लगाम नही होता ॥

शायर और उस पर बादाख्वार,
जहान में कोई इतना बदनाम नही होता ॥

(आरज़ू = Wish) (बजा = Desired) (मुत्तसिल = Near) (बादाख्वार = Drunkard)

Monday, June 03, 2013

Ghazal


कौन जाने कहाँ यह रात ले जाये
कहाँ मेरी उनसे यह मुलाकात ले जाये ॥

अब तक जो अहसास दफ्न थे दिल में
जाने कहाँ उसे मेरे जज़्बात ले जाये ॥

तूफ़ान तो दिल में वहाँ भी होगा, डर है
कहीं और, ना हमारे अघलात ले जाये ॥

(अघलात = Mistakes)