फिरंगियों को जो सुनाई आज वोही कथा दोहरानी है
नेताओ से इस देश को अब स्वतंत्रता दिलवानी है ॥
हिम से जमे रक्त में क्रांति की आग लगानी है
जिस देशभक्त का खून ना खोले खून नहीं वो पानी है ॥
सहनशीलता का लाभ उठाकर खूब हुई मनमानी है
अब बदलेंगे देश व्यवस्था हमने यही ठानी है ॥
बुंदेलो हरबोलों से जो हमने सुनी कहानी है
शस्त्र उठाकर हाथों में आज वही दोहरानी है ॥
भेंट चढ़ा दें देश को कसम यही खानी है
आधीनता में रहकर देह प्राण बेमानी है ॥
नेताओ से इस देश को अब स्वतंत्रता दिलवानी है ॥
हिम से जमे रक्त में क्रांति की आग लगानी है
जिस देशभक्त का खून ना खोले खून नहीं वो पानी है ॥
सहनशीलता का लाभ उठाकर खूब हुई मनमानी है
अब बदलेंगे देश व्यवस्था हमने यही ठानी है ॥
बुंदेलो हरबोलों से जो हमने सुनी कहानी है
शस्त्र उठाकर हाथों में आज वही दोहरानी है ॥
भेंट चढ़ा दें देश को कसम यही खानी है
आधीनता में रहकर देह प्राण बेमानी है ॥