Sunday, January 24, 2010

वहाँ किसी का प्रथम आना

वहाँ किसी का प्रथम आना
यहाँ हमारा जश्न मनाना
जैसे बेगानी शादी में
अब्दुल्ला दीवाना ।

अच्छा भोजन, थोडी मिठाई
चमाचम रोशनी
हमें क्रतिम खुशियों का
झुनझुना देना ।

यह धंधे का दबाव है,
या चाटुकारिता का प्रभाव
यूँ उनकी हर सफ़लता को
अपना बना लेना ।

यह हमारी कम रोशनी को छुपाने का
एक उपयुक्त उपाय है ।
चांद को अपना कहना
और सबको मुफ़्त कि चांदनी बाँटना ।

यह जश्न का नही, चिन्तन का समय है
यह छुपाने का नही, मंथन का समय है,

क्यों जश्न मनाने के लिये हमें
किसी और कि सफ़लता की आवश्यक्ता है ,
कि क्यों हमे किसी और की रोशनी चाहिये
हम स्वयं चांद क्यों नही हो सकते ।

आज हम इस गर्त मे इसलिये है कि
हम कबीर को भूल गये
निन्दक की महत्ता को भूल गये
डूब गये नितियों के समुद्र में
कर्मचारी की महत्ता को भूल गये ।
कर्मचारी की महत्ता को भूल गये ।

Thursday, January 21, 2010

फ़िर एक और नया साल आयेगा

कल फ़िर एक और नया साल आयेगा ।
आज से ही हम उसके स्वागत मे लग जायेंगे ॥

हम ये पूरी कोशिश करेंगे कि
संगीत के शोर मे हम उन चीखों को भुला दें ।
सिगरेट के धुएँ से हम उन तस्वीरों को धुन्धला कर दें ॥
मय के नशे मे उन यादों को उन ज़ख्मों को भुला दें ॥

और फ़िर तय्यार हो जायें नये साल के लिये ।

शायद इसमे कुछ गलत भी नही, शायद मैं भी यही करूंगा
मगर अब वक्त आ गया है इन ज़ख्मो को याद रखने का
उसे दिल मे संभाल के रखने का ।

बस यही कामना है कि ॥

संगीत के शोर से चीखों दबे ना,
सिगरेट के धुएँ से तस्वीरों और गहरी हों,
मय के नशे से ज़ख्म भूले ना ।


इसी कामना के साथ आपको और आपके परिवार को
नये वर्ष कि शुभकामनाएँ

एक बम ही तो फ़ूटा है

वो कहते है कि एक बम ही तो फ़ूटा है
वो कहते है कि कुछ गोलियाँ ही तो चली हैं
वो गलत भी क्या कहते है ये प्राय: ही तो होता है
हां गलत सिर्फ़ इतना है की हमें आदत हो गयी है

ना हमे पहले फ़र्क पडता था और ना अब पडता है
हम तब भी सुखी थे और आज भी है
हमे इससे क्या लेना देना की वो जो मरा वो कौन था
ना तो वो हमारे घर का था और ना हमारे शहर का

मुझे उसके मरने का दुख जरूर है
पर मेरा घर तो मुझे ही चलाना है
मैं सडक पर नहीं आ सकता,
मैं धरने पर नहीं बैठ सकता ।
हां मैं TV पर उसकी कहानी सुन
दर्द और रोष अवश्य प्रकट कर सकता हूँ ।

Drawing Room हो या शर्मा जी की पान की गुमटी
मैं अपना क्रोध विचारों के माध्यम से प्रकट करूंगा
मेरे विचार एक दिन जरूर क्रान्ती लायेंगे ।


मैं तो अपना कर्तव्य पूरा कर रहा हूँ
मैने जिने चुन के भेजा है अब उनकी बारी है
मेरे सर पर कोई भोज नही ।
मैं फ़िर सुखी हो सकता हूँ ॥
मैं फ़िर सुखी हो सकता हूँ ॥

ईष्या तू ना जा मेरे मन से

ईष्या तू ना जा मेरे मन से
जला ह्रदय के सुप्त दियों को अपने करधन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

स्वप्न मुझे बहलाते नहीं,जश्न रास आते नहीं,
अब भोजिल जीवन को कोई संघर्ष उकसाते नहीं.
तू कर पैदा वो भाव जो हिला दे मुझको,
हो लगाव मुझे अपने जीवन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

भटका बहुत अन्धेरों में,दिशाहीन सा मैं,
जीतता रहा खुद से, विपक्षहीन था मैं,
मिला ऐसे प्रतिपक्ष से, जो हरा दे मुझको,
हो भय मुझे उसके जीवन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

जला ह्रदय के सुप्त दियों को अपने करधन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

Wednesday, January 20, 2010

एक गज़ल

पूछ्ते है सब मुझसे नाम तेरा,
आकर ज़ुबान पर रह जाता है ।
डरते है तेरी रुसवाई से हम,
वरना कहदें सबको जी चाहता है ॥
किसी और के नाम से, कब तक उन्हे बुलाऊँगा,
कब तलक तसवीर को किस्से सुनाऊँगा ।
बहुत हुआ खेल लुका छिपी का,
मन हर पल यही सोचता है,
डरते है तेरी रुसवाई से हम,
वरना कहदें सबको जी चाहता है ॥
दिल मे रहता है ख्याल तुम्हारा,
बद से बदतर है अब हाल हमारा
क्या सुनायें अब हाल-ए-दिल अपनी जुबान से
कतरा कतरा यही दोहराता है