Monday, January 28, 2008

बू

वो सिर्फ़ हवा का झौंका नही,
वो सिर्फ़ बू का झरोंका नही,
वो एक जज़्बात का समंदर है,
बहता है अपने अंदाज़ से ।
भर देता है माहौल को हँसी से,
निकलता है जब ये अवाज़ से ।
होते नही हैं शब्द मगर,
लगते हैं कईं अनकहे अल्फ़ाज़ से ।
दवा सी है ताकत इसमे,
कोई जाके पूछे ये चारसाज़ से ।

बे-फ़िक्र उडाओ इसे जहां जी चाहे,
अच्छी बात क्या करनी लिहाज़ से ॥