Wednesday, January 31, 2007

अजीब खेल है जीवन !!!

अजीब खेल है जीवन !!!!

कईं प्रतियोगी है, कईं इनाम
कोई पहला, कोई आखिरी नही
कब शुरु, कब समाप्त कोई पता नही
मगर सब दौड़ रहे हैं.

अजीब खेल है जीवन !!!

न खेल भावना,न कोई नियम
कोई धीरे, कोई तेज़
कोई पैदल,कोई गाड़ी पर
न जीतना निश्चित,न हारना तय
मगर सब दौड़ रहे हैं.

अजीब खेल है जीवन !!!

कोई आधे मे ही जीत जाता है,
कोई अंत पहुंचकर भी हार जाता है
कभी हार के भी नाम है
कभी जीत के भी कुछ नही
मगर सब दौड़ रहे हैं.

अजीब खेल है जीवन !!!

Wednesday, January 17, 2007

गज़ल 5

शबाब नकाब मे छुपा रहा, हौसला-ए-दीद तंग रही,
शराफ़त और शरारत के बीच, चलती जंग रही

वो खड़े थे बाम पर, जब तक जुल्फ़ें बिखेर कर
रात खामोश रही,चांदनी दंग रही

महफ़िल मे वो आये हिज़ाब ओढ़ कर
आशिकों की शाम बदरंग रही

कौन रहा अकेले औज पर देर तक
जब तक चली हवा,उढ़ती पतंग रही