Tuesday, October 31, 2006

शुभ दिपावली

दीप हो खुशी के
भरपूर हंसी के
दीप हो जीत के
साथ मे मीत के
दीप हो संस्कार के
ना कि दुराचार के
दीप हो प्यार के
संग अपने यार के
दीप हो मिलन के
बिना किसी जलन के
दीप हो देश के
हर रुप भेष के
दीप हो संवाद के
ना हो आंतकवाद के
दीप हो भान्ति के
मगर हो शांती के
लौं सी रोशन हो खुशहाली आपकी
हर दीप से सजी हो दिवाली आपकी

Tuesday, October 10, 2006

गज़ल 3

जिंदगी जीने के काबिल नहीं
पर मौत से कुछ हासिल नहीं

चारागर से क्या उम्मीद रखें
जब चराह से हम ही कायल नहीं

फ़िरुंगा बे-फ़िक्र अर्सा-ए-आलम
अब कोई मेरा हामिल नहीं.

रोटी के चार हर्फ़,कुछ पन्ने किताबों के,
जिंदगी से कुछ और हासिल नहीं.