Friday, June 29, 2007

Ghazal No. 9

खुदा चाहे तो बाट दे तुकडों मे मुझे,
नहीं बाट सकता हूँ तुझे किसी और से ।


प्यार मे तुमने शहीद हज़ार देखे होंगे,
देखलो मुझे भी ज़रा गौर से ।


तल्खी-ए-ज़िस्त से घबरा कर आशिक नही जीते,
हौसले से लडते है हर दौर से ।

कोशिश हज़ार की ज़माने ने मगर,
ना टुटा एतबार, दयार-ए-जौर से ।

Wednesday, June 27, 2007

Ghazal No. 8

रहते हैं दहलीज़ पर आने को आतुर,
फ़रमान इतना कि कोई सताये ।

अब तो आँसू भी मेरा कहा नहीं मानते,
कमबख्त चले आते हैं बिना बुलाये ॥


किनसे कहें अब हाल-ए-दिल अपना,
जिनसे थी उम्मीद, हैं उनही के सताये ॥


फ़र्क कहाँ वफ़ा और ज़फ़ा में,
वो जानते नहीं, अपने पराये ॥

Ghazal No.7

लोग कहते है वो खुबसूरत नहीं,
ना जाने वो क्या देखते हैं ।

मन की नज़र से देखो तो जानो,
कि हम क्या देखते है ॥

हिज़ाब के दायरे मे, सब होता है,
सब हमें, हम उन्हें देखते है ॥

जवानी का मोढ,कुछ ऐसा ही है,
वो ख्वाब ज्यादा,सच कम देखते है ॥

इसमे आईने की कुछ खता नही,
जो देखना चाहें, हम वो देखते है ॥

Friday, June 22, 2007

प्यार

अगर मेरे भाग्य में तुम हो,
तो तुम मुझे मिल ही जाओगी,
अगर नहीं तो
वो मेरा दुर्भाग्य होगा ।

अत: मैं भविष्य की चिंता नहीं करना चाहता हूँ,
मुझे प्यार हुआ है और मैं उसे जीना चाहता हूँ ॥


तुम्हारे विचारों मे दिन भर खोये रहना,
सोचते सोचते रात यूँ ही काट देना,
तुम्हारा ख्याल करना और तुमसे उसकी उम्मीद करना,


मैं ये सब नहीं छोडना चाहता हूँ
मुझे प्यार हुआ है और मैं उसे जीना चाहता हूँ ॥

तुम्हारी तस्वीर को अपनी जेब में रखना,
पल पल उसे निहारते रहना,
तुम्हारे खतों को बार बार पढना,

मैं ये सब नहीं छोडना चाहता हूँ
मुझे प्यार हुआ है और मैं उसे जीना चाहता हूँ ॥

तुम्हारे इंतेज़ार में घंटो बिता देना,
तेरे आने से खुश होना,
और फ़िर बिना बात के नाराज़ होना,

मैं ये सब नहीं छोडना चाहता हूँ
मुझे प्यार हुआ है और मैं उसे जीना चाहता हूँ ॥

Sunday, June 17, 2007

मैं और मेरी प्रीत : Me and My Love

कल तुम्हे कोई मिल जायेगा,
कल मैं किसी का हो जाऊँगा,
जो है हमारे पास वो आज है ।

क्यों शिकायत में,
क्यों हिदायत में,
क्यों शरारत में इसे बर्बाद करें
क्यों उम्मीद करें एक दूजे से ,
क्यों खुद को नाराज़ करें ।

ना समाज से डरें , ना वक्त कि पर्वाह करें ,
जो दिल कहें वो कहें, जो दिल करे वो करें ।

तुम्हे हक़ है मुझे सताने का जब तुम्हें याद आए,
मैं तुम्हे याद करूँगा जब तन्हाई सताये ।

मैं बताऊँ तुम्हे अपने हर राज़ दिल के,
तुम अपनी मन की किताब खोल देना,
आ मिलके सिखाऐं दुनियॉ को दोस्त बन के जीना ।

ना किस्मत से लडेंगे, ना समाज से झगडेंगे,
वक्त आयेगा तो खुशी से बिछ्डेंगे
वक्त आयेगा तो खुशी से बिछ्डेंगे ।।

A tribute to my Love

प्रीत का क्षण अमोल है पैसे मे नहीं तुलता,
रहता है चहुँ और पर सबको नहीं मिलता
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वो अब दिल को भाने लगे हैं, हर वक्त याद आने लगे हैं ।
इकरार की उनसे है उम्मीद, मौसम सुहाने आने लगे हैं ।

माझी के ज़ख्म डराने लगे हैं, ज़फ़ा की याद दिलाने लगे हैं।
पढ ना लें कहीं वो चेहरा, हम उनसे नज़रे चुराने लगे हैं ।
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उसको बताऊँ या खुद से छुपाऊँ उलझन में हूँ,
समाज से लढूँ या अहसास दबाऊँ उलझन मे हूँ ।
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हलका हो गया भार दिल का, निकल गया गुबार दिल का,
ज़ुबान पे आ गई बात सारी , हो गया ज़ाहिर करार दिल का ।

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मेरे अहसास का इल्म था उन्हे, गुमान था की एक दिन हिज़ाब जाएगा,
वो मेरे इकरार का इंतेज़ार करते रहे, और मैं समझता रहा की उनका जवाब आएगा।

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मेरी मोहब्बत का ये सिला दिया उसने,
अपने महबूब से मिला दिया उसने ।
हँसकर शामिल हो गये खुशी में उसकी,
क्या हुआ जो ग़म घूँट का पिला दिया उसने ।
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कहतें है वो कि हम उनके काबिल नहीं, ये उनसे पूछिये हम जिन्हें हासिल नहीं ।
शरमातें हैं वो हमें दोस्त कहने में, और रोते हैं वो हम जिनमे शामिल नहीं ।

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तेरी दोस्ती से प्यार है मुझे, पर नफ़रत है हार से मुझे ।
क्या दोस्त साथी नहीं होते,यह ख्याल खाता है बार बार मुझे ।

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तू रहे खुशहाल सदा , बनाम तेरे मेरी कज़ा मांगू,
साया ना पडे कभी मेरा, तुझसे बिछडने की दुआँ मांगू ।

Saturday, June 16, 2007

विवाह

सब पूछ्ते है मुझसे कि मैं कब विवाह करूंगा,
तुम कब मेरे नाम का मंगलसूत्र पहनोगी,
ये प्रश्न मेरे मन मे कयीं और प्रश्नो को जन्म देता है,

क्या समाज के नियमों के दायरे मे ही सम्बन्ध पनपते है
क्या सम्बन्धो को समाज की इजाजत कि आवश्यक्ता है,
क्या कुछ चिन्हो से ही सम्बन्धो कि पुष्टि होती है.

मैं ये नहीं जानता, और ना मैं ये जानना चाहता हूं,
मैं सिर्फ़ इतना जानता हूं कि मेरा विवाह , इस समाज को नही मानता.
मैने मन ही मन तुमसे विवाह रचाया है
मन रूपी मंगलसूत्र धारण कर तुम मेरी अर्धांगिनी हो

समाज इसे नाम दे या न दे मुझे फ़र्क नहीं पडता,
मैं मन मे तुम्हारे साथ जीता हूं और जीता रहूंगा

मुझे विवाह रुपी बाह्य सामाजिक रुडियों मे नहीं बंधना.

मैं मन से विवाहित हूं और दूसरा विवाह कानूनन जुर्म है.

Wednesday, June 13, 2007

मुरुढ

निचोढ दिया सबको, वाट लगादी भाई,
मुरुढ था कि मरोड था समझ नहीं आयी.

चल पडे सफ़र को बस मे बैठ कर,
अंजान थे होगा क्या आगे जाकर.

कहाँ जिस्म मंदाकिनी का, कहाँ बस कि Body,
फ़स फ़स के बैठे रहे, कहकर adjust- माडी

बस और ऊमस का मजा तब तब आता था,
जब चिप चिपे बदन पे दूजा बदन टकराता था.

सीट का जो हाल था वो सजिथ हि जाने,
"See saw" था मुफ़्त मे, कोई माने या न माने.

रायगढ दर्शन के तो अंदाज़ ही निराले थे,
सिर्फ़ घटिया biscuit, और सढी चाय के प्याले थे.

अपने नाम को चरिथार्थ करता resort था,
काम मत करना ऐसा उनका pact था.

छे बिस्तर और चार पन्खे (?), दुविधा बढी भारी थी,
पसीने और हवा की जंग मे, हवा हर वक्त हारी थी

नींद मे अकेलापन ना लगे ऐसा उनका इरादा था,
बिस्तर मे भान्ति भान्ति के कीडों का बाडा था.

commode ऐसा दिया था bathroom मे लगाई के
पांच मिनट कराई के, दस मिनट सफ़ाई के.


Murud: A beach near pune.
Mandakini: The bus
Raigarh darshan: Tea stall
Kamat:The resort
Sajith: A friend of mine

Ghazal No. 6

सोचता हूँ फ़िर मोहब्बत करूँ, दिल को रुलाने के लिये,
अब कोई नया ग़म चाहिये,माझी को भुलाने के लिये.

वफ़ा नही है किस्मत मे अपनी,
एक मौका और सही इसे आज़माने के लिये.


जिस्म तो दर्द के नस्तर से घायल है,
ये हंसी तो फ़कत है ज़माने के लिये.

उसका खयाल उसकी खुशी, हंसी उसकी,
ये दौलत काफ़ी है दीवाने के लिये.

Wednesday, January 31, 2007

अजीब खेल है जीवन !!!

अजीब खेल है जीवन !!!!

कईं प्रतियोगी है, कईं इनाम
कोई पहला, कोई आखिरी नही
कब शुरु, कब समाप्त कोई पता नही
मगर सब दौड़ रहे हैं.

अजीब खेल है जीवन !!!

न खेल भावना,न कोई नियम
कोई धीरे, कोई तेज़
कोई पैदल,कोई गाड़ी पर
न जीतना निश्चित,न हारना तय
मगर सब दौड़ रहे हैं.

अजीब खेल है जीवन !!!

कोई आधे मे ही जीत जाता है,
कोई अंत पहुंचकर भी हार जाता है
कभी हार के भी नाम है
कभी जीत के भी कुछ नही
मगर सब दौड़ रहे हैं.

अजीब खेल है जीवन !!!

Wednesday, January 17, 2007

गज़ल 5

शबाब नकाब मे छुपा रहा, हौसला-ए-दीद तंग रही,
शराफ़त और शरारत के बीच, चलती जंग रही

वो खड़े थे बाम पर, जब तक जुल्फ़ें बिखेर कर
रात खामोश रही,चांदनी दंग रही

महफ़िल मे वो आये हिज़ाब ओढ़ कर
आशिकों की शाम बदरंग रही

कौन रहा अकेले औज पर देर तक
जब तक चली हवा,उढ़ती पतंग रही