Monday, October 04, 2010

Ghazal

आसान नहीं यूं तुमसे जुदा होना
कब तलक गैरों से दो चार होना ॥

महफ़िल में होता है आसान मगर
दुशवार है तन्हाई मे न बेकरार होना ॥

अपनी मर्जी से होतें नहीं है फ़ैसले
वरना कौन चाहेगा गम-ए-यार होना ॥

जिस्म दूर हैं हमारे तो क्या गम है
चाहत है दिल का नज़दीक तर होना ॥