Monday, September 02, 2013

Ghazal

विरानों की आदत सी हो गयी है
मैं अब आवाजों से डरता हूँ ॥

कट गया अपनी जड़ो से कब से
मैं अब रिवाजों से डरता हूँ ॥

हर दस्तक पर सोचता हूँ रकीब न हो
मैं अब दरवाजों से डरता हूँ ॥


Wednesday, August 14, 2013

Ghazal

कईं दिनों तक उनका दीदार नही होता
यूं ही आशिक बीमार नही होता ॥

नहीं ईल्म उन्हें ग़म-ए -गर्दिश -ए -अय्याम का
सियासत में कोई ना दार नही होता ॥

एक मौके की तलाश में ता-उम्र भटकते रहे
वर्ना हमसे बेहतर कोई अदाकार नहीं होता ॥

वो हमसे पूछ्ते हैं क्या रफ्त है दोनों में
गर चाय नहीं होती तो अखबार नही होता ॥

Wednesday, June 05, 2013

Veer Ras

फिरंगियों को जो सुनाई आज वोही कथा दोहरानी है
नेताओ से इस देश को अब स्वतंत्रता दिलवानी है ॥

हिम से जमे रक्त में क्रांति की आग लगानी है
जिस देशभक्त का खून ना खोले खून नहीं वो पानी है ॥

सहनशीलता का लाभ उठाकर खूब हुई मनमानी है
अब बदलेंगे देश व्यवस्था हमने यही ठानी है ॥

बुंदेलो हरबोलों से जो हमने सुनी कहानी है
शस्त्र उठाकर हाथों में आज वही दोहरानी है ॥

भेंट चढ़ा दें देश को कसम यही खानी है
आधीनता में रहकर देह प्राण बेमानी है ॥















Ghazal

आरज़ू का बजा अंजाम नही होता
जैसा चाहा वैसा आम नही होता ॥

वो कहते है इश्क मुश्किल है
कौन समझाये,आसान कोई काम नही होता ॥

सुना हैं वो शाह का मुत्तसिल है,वरना
कोई ऐसा बे-लगाम नही होता ॥

शायर और उस पर बादाख्वार,
जहान में कोई इतना बदनाम नही होता ॥

(आरज़ू = Wish) (बजा = Desired) (मुत्तसिल = Near) (बादाख्वार = Drunkard)

Monday, June 03, 2013

Ghazal


कौन जाने कहाँ यह रात ले जाये
कहाँ मेरी उनसे यह मुलाकात ले जाये ॥

अब तक जो अहसास दफ्न थे दिल में
जाने कहाँ उसे मेरे जज़्बात ले जाये ॥

तूफ़ान तो दिल में वहाँ भी होगा, डर है
कहीं और, ना हमारे अघलात ले जाये ॥

(अघलात = Mistakes)



Wednesday, May 29, 2013

उठो भारत के पूत उठो

बहुत हुआ विशलेषण,बहुत हुई तैयारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

मौत दो उसे भयानक जो भ्रष्टाचारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

मधुर स्वप्न से बाहर निकलो, छोड़ो जो लाचारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाना अब यही देहारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

हर पुत्र बने भगत सिंह यही आस हमारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥

स्वयं को करें देश अर्पण धन स्वप्न बिमारी है
उठो भारत के पूत उठो ,अब करने की बारी है ॥



Thursday, May 23, 2013

Ghazal

विचारों की कोई भाषा नही होती
बहुत हैं यहाँ जो अशार नहीं जानते ॥

उनसे वफ़ा की नहीं उम्मीद
जो ऐतबार नही जानते ॥

नही आता उन्हें जीत का मज़ा
जो तजुर्बा -ए -हार नहीं जानते ॥

अज़ाब -ए-मुफलिसी उन्हें क्या समझायें
जो जान-ए-ज़ार नहीं जानते ॥

चंद लोग ही ज़िंदा बचे हैं यहाँ "भरत"
जो रिश्तों का कारोबार नही जानते ॥



Tuesday, April 30, 2013

कर्मण्येवाधिकारस्ते

मैं बोलता हूँ पर मुझे कोई सुनता नहीं ।
मैं चीखता हूँ पर मेरी चीख किसे भी सुनाई नहीं देती ।
यह स्वप्न नहीं जनतंत्र है ॥
यहाँ एक व्यक्ति की कोई पूछ नहीं ।
और मैं जानता हूँ की मैं भीड़ नहीं ॥
ना मैं भीड़ जमा कर सकता हूँ और ना ही
उसका हिस्सा बन सकता हूँ ।
मैं सिर्फ चिल्ला सकता हूँ इस उम्मीद में की
मेरी आवाज़ एक दिन गूंज बनेगी ॥
॥ कर्मण्येवाधिकारस्ते ।।