Tuesday, April 30, 2013

कर्मण्येवाधिकारस्ते

मैं बोलता हूँ पर मुझे कोई सुनता नहीं ।
मैं चीखता हूँ पर मेरी चीख किसे भी सुनाई नहीं देती ।
यह स्वप्न नहीं जनतंत्र है ॥
यहाँ एक व्यक्ति की कोई पूछ नहीं ।
और मैं जानता हूँ की मैं भीड़ नहीं ॥
ना मैं भीड़ जमा कर सकता हूँ और ना ही
उसका हिस्सा बन सकता हूँ ।
मैं सिर्फ चिल्ला सकता हूँ इस उम्मीद में की
मेरी आवाज़ एक दिन गूंज बनेगी ॥
॥ कर्मण्येवाधिकारस्ते ।।