Thursday, July 06, 2006

उसकी मज़ार

मैं खडा था उसकी मज़ार पर,
तन्हा ,निराश ,हताश एकदम अकेला....
मुहँ मे शब्द नहीं थे
आंसू रुकते नहीं थे.
तन शान्त था मगर
मन मे विचारों का युद्ध.
हर दिशा से एक विचार आता और
दूसरी दिशा के विचार से टकरा जाता
इतनी दिशायें होती हैं मुझे मालूम ही नही था.
हर विचार मुझे माझी कि याद दिलाता
हर विचार मुझे और पीछे ले जाता.
हर विचार तेरे और करीब ले जाता......
तुम ही कहो
क्यों रोक लगाता मैं अपने विचार पर.
मैं खडा था उसकी मज़ार पर,

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