Wednesday, June 27, 2007

Ghazal No. 8

रहते हैं दहलीज़ पर आने को आतुर,
फ़रमान इतना कि कोई सताये ।

अब तो आँसू भी मेरा कहा नहीं मानते,
कमबख्त चले आते हैं बिना बुलाये ॥


किनसे कहें अब हाल-ए-दिल अपना,
जिनसे थी उम्मीद, हैं उनही के सताये ॥


फ़र्क कहाँ वफ़ा और ज़फ़ा में,
वो जानते नहीं, अपने पराये ॥

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