Saturday, June 16, 2007

विवाह

सब पूछ्ते है मुझसे कि मैं कब विवाह करूंगा,
तुम कब मेरे नाम का मंगलसूत्र पहनोगी,
ये प्रश्न मेरे मन मे कयीं और प्रश्नो को जन्म देता है,

क्या समाज के नियमों के दायरे मे ही सम्बन्ध पनपते है
क्या सम्बन्धो को समाज की इजाजत कि आवश्यक्ता है,
क्या कुछ चिन्हो से ही सम्बन्धो कि पुष्टि होती है.

मैं ये नहीं जानता, और ना मैं ये जानना चाहता हूं,
मैं सिर्फ़ इतना जानता हूं कि मेरा विवाह , इस समाज को नही मानता.
मैने मन ही मन तुमसे विवाह रचाया है
मन रूपी मंगलसूत्र धारण कर तुम मेरी अर्धांगिनी हो

समाज इसे नाम दे या न दे मुझे फ़र्क नहीं पडता,
मैं मन मे तुम्हारे साथ जीता हूं और जीता रहूंगा

मुझे विवाह रुपी बाह्य सामाजिक रुडियों मे नहीं बंधना.

मैं मन से विवाहित हूं और दूसरा विवाह कानूनन जुर्म है.

1 comment:

k7 said...

Anna, I complete concur with you...