Wednesday, June 13, 2007

मुरुढ

निचोढ दिया सबको, वाट लगादी भाई,
मुरुढ था कि मरोड था समझ नहीं आयी.

चल पडे सफ़र को बस मे बैठ कर,
अंजान थे होगा क्या आगे जाकर.

कहाँ जिस्म मंदाकिनी का, कहाँ बस कि Body,
फ़स फ़स के बैठे रहे, कहकर adjust- माडी

बस और ऊमस का मजा तब तब आता था,
जब चिप चिपे बदन पे दूजा बदन टकराता था.

सीट का जो हाल था वो सजिथ हि जाने,
"See saw" था मुफ़्त मे, कोई माने या न माने.

रायगढ दर्शन के तो अंदाज़ ही निराले थे,
सिर्फ़ घटिया biscuit, और सढी चाय के प्याले थे.

अपने नाम को चरिथार्थ करता resort था,
काम मत करना ऐसा उनका pact था.

छे बिस्तर और चार पन्खे (?), दुविधा बढी भारी थी,
पसीने और हवा की जंग मे, हवा हर वक्त हारी थी

नींद मे अकेलापन ना लगे ऐसा उनका इरादा था,
बिस्तर मे भान्ति भान्ति के कीडों का बाडा था.

commode ऐसा दिया था bathroom मे लगाई के
पांच मिनट कराई के, दस मिनट सफ़ाई के.


Murud: A beach near pune.
Mandakini: The bus
Raigarh darshan: Tea stall
Kamat:The resort
Sajith: A friend of mine

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