Wednesday, June 13, 2007

Ghazal No. 6

सोचता हूँ फ़िर मोहब्बत करूँ, दिल को रुलाने के लिये,
अब कोई नया ग़म चाहिये,माझी को भुलाने के लिये.

वफ़ा नही है किस्मत मे अपनी,
एक मौका और सही इसे आज़माने के लिये.


जिस्म तो दर्द के नस्तर से घायल है,
ये हंसी तो फ़कत है ज़माने के लिये.

उसका खयाल उसकी खुशी, हंसी उसकी,
ये दौलत काफ़ी है दीवाने के लिये.

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