Wednesday, January 20, 2010

एक गज़ल

पूछ्ते है सब मुझसे नाम तेरा,
आकर ज़ुबान पर रह जाता है ।
डरते है तेरी रुसवाई से हम,
वरना कहदें सबको जी चाहता है ॥
किसी और के नाम से, कब तक उन्हे बुलाऊँगा,
कब तलक तसवीर को किस्से सुनाऊँगा ।
बहुत हुआ खेल लुका छिपी का,
मन हर पल यही सोचता है,
डरते है तेरी रुसवाई से हम,
वरना कहदें सबको जी चाहता है ॥
दिल मे रहता है ख्याल तुम्हारा,
बद से बदतर है अब हाल हमारा
क्या सुनायें अब हाल-ए-दिल अपनी जुबान से
कतरा कतरा यही दोहराता है

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