Sunday, January 24, 2010

वहाँ किसी का प्रथम आना

वहाँ किसी का प्रथम आना
यहाँ हमारा जश्न मनाना
जैसे बेगानी शादी में
अब्दुल्ला दीवाना ।

अच्छा भोजन, थोडी मिठाई
चमाचम रोशनी
हमें क्रतिम खुशियों का
झुनझुना देना ।

यह धंधे का दबाव है,
या चाटुकारिता का प्रभाव
यूँ उनकी हर सफ़लता को
अपना बना लेना ।

यह हमारी कम रोशनी को छुपाने का
एक उपयुक्त उपाय है ।
चांद को अपना कहना
और सबको मुफ़्त कि चांदनी बाँटना ।

यह जश्न का नही, चिन्तन का समय है
यह छुपाने का नही, मंथन का समय है,

क्यों जश्न मनाने के लिये हमें
किसी और कि सफ़लता की आवश्यक्ता है ,
कि क्यों हमे किसी और की रोशनी चाहिये
हम स्वयं चांद क्यों नही हो सकते ।

आज हम इस गर्त मे इसलिये है कि
हम कबीर को भूल गये
निन्दक की महत्ता को भूल गये
डूब गये नितियों के समुद्र में
कर्मचारी की महत्ता को भूल गये ।
कर्मचारी की महत्ता को भूल गये ।

No comments: