वो कहते है कि एक बम ही तो फ़ूटा है
वो कहते है कि कुछ गोलियाँ ही तो चली हैं
वो गलत भी क्या कहते है ये प्राय: ही तो होता है
हां गलत सिर्फ़ इतना है की हमें आदत हो गयी है
ना हमे पहले फ़र्क पडता था और ना अब पडता है
हम तब भी सुखी थे और आज भी है
हमे इससे क्या लेना देना की वो जो मरा वो कौन था
ना तो वो हमारे घर का था और ना हमारे शहर का
मुझे उसके मरने का दुख जरूर है
पर मेरा घर तो मुझे ही चलाना है
मैं सडक पर नहीं आ सकता,
मैं धरने पर नहीं बैठ सकता ।
हां मैं TV पर उसकी कहानी सुन
दर्द और रोष अवश्य प्रकट कर सकता हूँ ।
Drawing Room हो या शर्मा जी की पान की गुमटी
मैं अपना क्रोध विचारों के माध्यम से प्रकट करूंगा
मेरे विचार एक दिन जरूर क्रान्ती लायेंगे ।
मैं तो अपना कर्तव्य पूरा कर रहा हूँ
मैने जिने चुन के भेजा है अब उनकी बारी है
मेरे सर पर कोई भोज नही ।
मैं फ़िर सुखी हो सकता हूँ ॥
मैं फ़िर सुखी हो सकता हूँ ॥
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