Thursday, January 21, 2010

ईष्या तू ना जा मेरे मन से

ईष्या तू ना जा मेरे मन से
जला ह्रदय के सुप्त दियों को अपने करधन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

स्वप्न मुझे बहलाते नहीं,जश्न रास आते नहीं,
अब भोजिल जीवन को कोई संघर्ष उकसाते नहीं.
तू कर पैदा वो भाव जो हिला दे मुझको,
हो लगाव मुझे अपने जीवन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

भटका बहुत अन्धेरों में,दिशाहीन सा मैं,
जीतता रहा खुद से, विपक्षहीन था मैं,
मिला ऐसे प्रतिपक्ष से, जो हरा दे मुझको,
हो भय मुझे उसके जीवन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

जला ह्रदय के सुप्त दियों को अपने करधन से
ईष्या तू ना जा मेरे मन से

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