Monday, June 14, 2010

A tribute to Ghalib

Inspired by "Yeh na thi hamaari kismat ki visaale yaar hotaa"

होता हासिल हमें अंदाज़-ए-ग़ालिब अगर
जो भी निकलता मुंह से, वो लफ़्ज़ अशार होता

ग़म-ए-फ़ुऱकत से निज़ात मिलती
अगर मैं बादा-ख्वार होता

वो पुर्सिश-ए-हाल को आते
ऐ खुदा काश मैं बिमार होता

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