सोचा कुछ अच्छा लिखें, कुछ ऐसा जो मुझे सकारात्मक बनायें
जो मुझे आगे बढने की प्रेरणा दे ।
बीते कुछ दिनों से मैं दबाव में हूँ
नकारात्मक भावनाओं ने मुझे घेर लिया है ॥
ऐसा लगता है जैसे मुझमे ऊर्जा का अभाव हो
काम में मेरा मन नहीं लगता, गलत विचारों ने मेरे मन मे घर लिया है ॥
मैं अपने दुख से त्रस्त नहीं बल्कि दुसरों कि खुशी से परेशान हुँ
मैं इसलिये दुखी हूँ कि वो मुझसे ज्यादा कमाता है ।
वो जो काम मुझसे कम करता है, और आराम ज्यादा ,
परंतु वो शायद मेरे अधिकारी का लाडला है,
या शायद उसे मुहँ खोलना आता है ,
वो कम काम , थोडी फ़िक्र और जिक्र ज्यादा करता है ।
मुझे भी यह कला सिखनी होगी,
शायद इसिको द्रश्यता बनाना कहते है ।
किसी और के काम को छीन कर उसे अपना बताना
सब काम मे अपन नाम जोडना
बिना भाग लिये कार्य का श्रेय लेना
स्वयं को सर्व ज्ञानी समझना और
सबके समक्ष ऐसा व्यवहार करना ॥
अगर मुझे इस कपटी समाज में जीना है
अगर मुझे इस दौड मे जीतना है
तो मुझे द्रश्यता का सबक लेना होगा
यही मेरे आगे बढने की कूंजी है,
अगर इससे मेरा ईमान मरता है तो मरे
मेरी आत्मा पर बोझ रहे तो रहे
मुझे यह करना ही होगा
क्योंकि ईमान से पेट नहीं भरता ।
ऐ लेख मेरे, मुझे जीवन के इस सत्य का पुनः
बोध कराने हेतु तेरा शत शत धन्यवाद ॥
5 comments:
shant gadadhari bheem shant...
Jai Ho Jai ho.... yehi haal saab ka hai bhai..... :)
Na mein Kavi Huin Na Hu Darshanik. Par Janata Hu Drushta Hai Kshanik.
Tum to ho Mahatab thode hi ho Aaftab. Kuin Hote ho itane Betab.
Agar Atal Rahe Apane Sthan Par
Karoge Sabako Par.Kuinki Duniya Gol Hai Sarkar.
बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।
आपका लेख अच्छा लगा।
हिंदी को आप जैसे ब्लागरों की ही जरूरत है ।
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katu satya
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